कर्मोदय
कर्मोदय रोने के लिए नहीं, कर्म धोने के लिए/ विशुद्धि बढ़ाने के लिए।
वैसे तो अनादि से हम सब मिथ्यादृष्टि ही हैं। इससे सिद्ध होता है कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति पुरुषार्थ से ही संभव है।
तरक्की परिणाम की विशुद्धि से होती है, वैभव बढ़ाने से नहीं।
प्रवचन आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (24 जनवरी)