नोकर्म शरीरादि।
“नो” = ईषत्/ अल्प/ नहीं भी/ विपरीत (कर्म से क्योंकि कर्म तो आत्मा का घात करते हैं, नोकर्म नहीं या ईषत सुख/दु:ख देते हैं)
इसलिये कर्म-क्षय के लिये शरीर को ज्यादा पीड़ित करना अज्ञान भाव है, ना ही ज्यादा पोषण योग्य है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड गाथा- 244)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने कर्म एवं नोकर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कर्मों के क्षय करने का प़यास करना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने कर्म एवं नोकर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कर्मों के क्षय करने का प़यास करना परम आवश्यक है।
‘ईषत’ ka kya meaning hai, please ?
जो “नो” का मतलब है।
Okay.