आत्मा में रागद्वेष के कर्मोदय में आप रागद्वेष ना भी करना चाहे तो भी करना पड़ेगा, उससे बंध भी होगा ही।
कारण ?
1. कर्म बीज हमने बोया था सो फल खट्टा/मीठा खाना ही पड़ेगा।
2. पुरुषार्थ की एक सीमा होती है जैसे खिचड़ी बनते समय बस देखना ही हमारे हाथ होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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कर्म स्वयं के द्वारा किए जाते हैं,उसका फल भोगना पड़ता है।
पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यास करना होता है,चार प्रकार के होते हैं,धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जो कर्म या बीज बोया है,उसका फल स्वयं ही भोगना पड़ता है। जीवन में कर्म काटने के लिए पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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कर्म स्वयं के द्वारा किए जाते हैं,उसका फल भोगना पड़ता है।
पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यास करना होता है,चार प्रकार के होते हैं,धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जो कर्म या बीज बोया है,उसका फल स्वयं ही भोगना पड़ता है। जीवन में कर्म काटने के लिए पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।