कर्म किसी को नहीं छोड़ते, तो व्रत/उपवास/पुरुषार्थ से शांत कैसे ?
पांडाल में बहुत गर्मी हो, कोई कूलर चला दे तो असाता शांत होगी ना !
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
जैन धर्म में कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। पाप के कर्म को काटने की अपेक्षा उसे त्याग करने के भाव होना चाहिए। पाप कर्मो को त्याग के लिए वृत, उपवास और धर्म पुरुषार्थ करना आवश्यक है जिससे जीवन में शान्ती प़ाप्त हो सकती है।अतः पाप कर्मो के त्याग से पुण्य की बढोतरी हो सकती है।
One Response
जैन धर्म में कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। पाप के कर्म को काटने की अपेक्षा उसे त्याग करने के भाव होना चाहिए। पाप कर्मो को त्याग के लिए वृत, उपवास और धर्म पुरुषार्थ करना आवश्यक है जिससे जीवन में शान्ती प़ाप्त हो सकती है।अतः पाप कर्मो के त्याग से पुण्य की बढोतरी हो सकती है।