कर्म भोगना नहीं, इसमें तो आकुलता/व्याकुलता होती है,
कर्म काटना सही है, यह समता भाव के साथ ही संभव है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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कर्म–जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।यह भी तीन प्रकार के हैं द़व्य, भाव और नौ कर्म। अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्म जो भोगता है इसमें आकुलता और व्याकुलता होती हैं लेकिन कर्म को काटना आवश्यक है,पर यह समता भाव के साथ ही संम्भव हैं। अतः जीवन में कर्म काटने का प्रयास करना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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कर्म–जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।यह भी तीन प्रकार के हैं द़व्य, भाव और नौ कर्म। अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्म जो भोगता है इसमें आकुलता और व्याकुलता होती हैं लेकिन कर्म को काटना आवश्यक है,पर यह समता भाव के साथ ही संम्भव हैं। अतः जीवन में कर्म काटने का प्रयास करना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।