कर्म…
सम्यग्दृष्टि के “हो जाते हैं”,
मिथ्यादृष्टि.. “कर जाते हैं” ।
Share this on...
One Response
जीवन में अपने कर्म को सम्यग्द्वष्टि मानकर चलना आवश्यक है ताकि कर्म बंध पुण्य की प्राप्ति हो सकती है लेकिन मिथ्याद्वष्टि से कर्म करेंगे तो पाप की गठरी बनती रहगी।
One Response
जीवन में अपने कर्म को सम्यग्द्वष्टि मानकर चलना आवश्यक है ताकि कर्म बंध पुण्य की प्राप्ति हो सकती है लेकिन मिथ्याद्वष्टि से कर्म करेंगे तो पाप की गठरी बनती रहगी।