1. निषिद्ध कर्म…संक्लेष भाव/ पाप कर्म।
2. काम कर्म…. संसारिक, अहंकार सहित।
3. विशुद्ध कर्म….धार्मिक/ सहज जैसे माँ संतान के लिये करतीं हैं, इनसे निर्जरा भी होती है।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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4 Responses
मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने कर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए विशुद्ध कर्म का पालन करना परम आवश्यक है।
1) जिन कर्मों को करने का निषेध किया है।
2) माँ सहजता से (बिना रिटर्न की भावना के) जो कर्म करतीं हैं, उनसे निर्जरा भी क्योंकि रागद्वेष रहित क्रियायें हैं।
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मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने कर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए विशुद्ध कर्म का पालन करना परम आवश्यक है।
1) ‘निषिद्ध कर्म’ ka shaabdik arth kya hai, please ?
2) माँ संतान के लिए kuch karti hai to kya usme ‘निर्जरा’ hoti hai ?
1) जिन कर्मों को करने का निषेध किया है।
2) माँ सहजता से (बिना रिटर्न की भावना के) जो कर्म करतीं हैं, उनसे निर्जरा भी क्योंकि रागद्वेष रहित क्रियायें हैं।
Okay.