मुनियों को गर्भ तथा जन्म कल्याणकों को देखने में रुचि नहीं रहती।
तप कल्याणक से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, निष्कृमण (घर छोड़ना)।
उन्हें तपादि कल्याणकों का पता अवधिज्ञान तथा देवों के आवागमन को देखकर हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 236)
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मुनि महाराज ने मुनियों के लिए कल्याणक का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! लेकिन श्रावकों को भगवान के सभी कल्याणक देखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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मुनि महाराज ने मुनियों के लिए कल्याणक का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! लेकिन श्रावकों को भगवान के सभी कल्याणक देखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!