1. अनंतानुबंधी… अनंत से बंध रही है, अनंत के लिये बंध रही है। इसलिए उसे हत्यारी कहा जाता है।
2. अप्रत्यास्थान… बेचारी (सिर्फ़ सम्यग्दर्शन करा पाती है)।
3. प्रत्याख्यान… सहकारी ( आचरण शुरू कराने में)।
4. संज्वलन…उपकारी (10वें गुणस्थान तक)।
मुनि श्री मंगल सागर जी
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मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने कषाय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कषाय समाप्त करना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने कषाय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कषाय समाप्त करना परम आवश्यक है।