पीड़ा को पीड़ा मानो तो पीड़ा महसूस होगी ।
Adventure की पीड़ा में आनंद आता है, ऐसे ही केशलोंच आदि में तथा निर्जरा भी ।
सन् ’95 में केशलोंच को एक अभ्यस्त शराबी लगातार देखता रहा/रोता रहा, आज सात प्रतिमाधारी है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Share this on...
6 Responses
केशलौंच–जीवन परत्रंत निश्चित अवधि के उपरांत अपने सिर,दाड़ी और मूंछ के वालों को बिना खेद के शान्त भाव से उखाड़ कर अलग कर देने की प्रतिज्ञा लेना यह साधु का केशलौंच नाम का मूल है,इसे अधिकतम चार महीनों के अंतराल में करना अनिवार्य है ,केशलौंच के दिन उपवास भी किया जाता है।
प़भावना- – ज्ञान, ध्यान,तप, दया,दान तथा जिन पूजा आदि के द्वारा जिन धर्म की महिमा को प़काशित करना प़भावना है। इसके अतिरिक्त रत्नत्रय के प़भाव से आपनी आत्मा को प़काशित करना प़भावना है यह सम्यग्द्ष्टि का एक गुण है।
अतः यह कथन सत्य है कि पीड़ा को पीड़ा मानता है तब पीड़ा अवश्य महसूस होगी। अतः धर्म गुरु के प्रति श्रद्वान करना चाहिए जिससे उनको देखकर अवश्य ही अपनी पीड़ा भूलकर जीवन का कल्याण होगा।
केशलोंच करने वालों को पीड़ा तो होती है पर चूंकि उसे स्वीकार कर लिया है तथा उन्हें विश्वास है कि इस पीड़ा को सहने से निर्जरा होती है सो उसे सहज/ खुशी से सहना चाहता है ।
जैसे माँ बिना निर्जरा के लिए भी सिर्फ स्वीकारते ही/ खुशी मिलने की आशा में/ मोहवश प्रसव-पीड़ा बार-बार स्वीकारती है
6 Responses
केशलौंच–जीवन परत्रंत निश्चित अवधि के उपरांत अपने सिर,दाड़ी और मूंछ के वालों को बिना खेद के शान्त भाव से उखाड़ कर अलग कर देने की प्रतिज्ञा लेना यह साधु का केशलौंच नाम का मूल है,इसे अधिकतम चार महीनों के अंतराल में करना अनिवार्य है ,केशलौंच के दिन उपवास भी किया जाता है।
प़भावना- – ज्ञान, ध्यान,तप, दया,दान तथा जिन पूजा आदि के द्वारा जिन धर्म की महिमा को प़काशित करना प़भावना है। इसके अतिरिक्त रत्नत्रय के प़भाव से आपनी आत्मा को प़काशित करना प़भावना है यह सम्यग्द्ष्टि का एक गुण है।
अतः यह कथन सत्य है कि पीड़ा को पीड़ा मानता है तब पीड़ा अवश्य महसूस होगी। अतः धर्म गुरु के प्रति श्रद्वान करना चाहिए जिससे उनको देखकर अवश्य ही अपनी पीड़ा भूलकर जीवन का कल्याण होगा।
“अभ्यस्त शराबी” ka kya meaning hai, please?
Habitual drinker.
To kya usne us din, “Keshlonch” ke peeda mehsoos ki thi?
केशलोंच करने वालों को पीड़ा तो होती है पर चूंकि उसे स्वीकार कर लिया है तथा उन्हें विश्वास है कि इस पीड़ा को सहने से निर्जरा होती है सो उसे सहज/ खुशी से सहना चाहता है ।
जैसे माँ बिना निर्जरा के लिए भी सिर्फ स्वीकारते ही/ खुशी मिलने की आशा में/ मोहवश प्रसव-पीड़ा बार-बार स्वीकारती है
Okay. Beautiful explanation!