क्षायिक-सम्यग्दर्शन

पहले 3 करण ( अधःप्रवृति-करण, अपूर्व-करण, अनिवृति-करण ) फिर अनंतानुबंधी की विसंयोजना, 12 कषायों तथा 9 नोकषायों में से किन्हीं 5 में ( रति/अरति, हास्य/शोक, 3 वेद में से 1-1, भय, जुगुप्सा )। यहां जीव अंतरर्मुहूर्त के लिये विश्राम करता है पुनः 3 करण फिर मिथ्यात्व प्रकृति, सम्यक-मिथ्यात्व और  सम्यक-प्रकृति का क्षय करके क्षायिक- सम्यग्दर्शन प्रकट होता है।
( उपरोक्त में 3 करण दो बार आये हैं, यह उन लोगों के लिये  हैं जिन्होंने विसंयोजना पहले से नहीं कर रखी हो। यदि विसंयोजना पहले कर ली है तो 3 करण के बाद मिथ्यात्व प्रकृति, सम्यक-मिथ्यात्व तथा सम्यक-प्रकृति का क्षय करके क्षायिक- सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेगा )

कर्मकांड़ गाथा 335,336

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