समवसरण में भगवान के सिंहासन में खुले मुँह वाले सिंह होते हैं जो पराक्रम का प्रतीक हैं,
इसमें वास्तु दोष नहीं हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Share this on...
One Response
समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं।जहाँ समस्त स्त्री पुरुष, पशु पक्षी, देवी देवता समान भाव से भगवान् के उपदेश सुनते हैं अथवा जहां सभी भव्य जीव तीर्थंकर की दिव्य वाणी के अवसर की प़तीक्षा करते हैं।
आगम में भगवान् के सिंहासन में खुले मुंह वाले सिंह होते हैं जो पराक़म के प़तीक होते हैं, इसमे वास्तु दोष नहीं होता है।
One Response
समवसरण—तीर्थंकर की धर्म सभा को कहते हैं।जहाँ समस्त स्त्री पुरुष, पशु पक्षी, देवी देवता समान भाव से भगवान् के उपदेश सुनते हैं अथवा जहां सभी भव्य जीव तीर्थंकर की दिव्य वाणी के अवसर की प़तीक्षा करते हैं।
आगम में भगवान् के सिंहासन में खुले मुंह वाले सिंह होते हैं जो पराक़म के प़तीक होते हैं, इसमे वास्तु दोष नहीं होता है।