आदिनाथ भगवान के बृषभसेन तथा अनंतवीर गणधर, भगवान से पहले मोक्ष चले गये थे ।
मुनि श्री सुधासागर जी/पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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मोक्ष—समस्त कर्मो के रहित आत्मा की परम विशुद्व अवस्था का नाम होता है।
गणधर—जो तीर्थंकर के पादमूल में समस्त ॠध्दियां प़ाप्त करके भगवान् की दिव्यध्वनि को धारण करने में समर्थ होते हैं और लोक कल्याण के लिए वाणी का सार द्वादशांग श्रुत के रुप में जगत को प़दान करते हैं।प़ाप्त त्रृद्वियों के बल से गणधर आहार, निहार, निन्द़ा,आलस आदि से सर्वथा मुक्त रहते हैं और चोबीस घंन्टे भगवान् की वाणी हृदयगम करने में सलग्न रहते हैं।अतः गणधर तद्भभव मोक्षगामी होते हैं।
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मोक्ष—समस्त कर्मो के रहित आत्मा की परम विशुद्व अवस्था का नाम होता है।
गणधर—जो तीर्थंकर के पादमूल में समस्त ॠध्दियां प़ाप्त करके भगवान् की दिव्यध्वनि को धारण करने में समर्थ होते हैं और लोक कल्याण के लिए वाणी का सार द्वादशांग श्रुत के रुप में जगत को प़दान करते हैं।प़ाप्त त्रृद्वियों के बल से गणधर आहार, निहार, निन्द़ा,आलस आदि से सर्वथा मुक्त रहते हैं और चोबीस घंन्टे भगवान् की वाणी हृदयगम करने में सलग्न रहते हैं।अतः गणधर तद्भभव मोक्षगामी होते हैं।