समवसरण में सब गणधर अलग-अलग जगहों पर चारों ओर बैठते हैं ताकि उनकी तरफ के जीव अपनी-अपनी तरफ वाले गणधरों से प्रश्न कर सकें ।
ऐसा वर्णन श्री उत्तरपुराण में कुंथुनाथ भगवान के चरित्र में आया है – कि सब गणधर चारों ओर बैठे थे तथा सुधर्माचार से प्रश्न किया ….।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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गणधर का तात्पर्य जो तीर्थंकरों के पादमूल में समस्त रिद्धियां प्राप्त करके भगवान की दिव्यध्वनि को धारण करने में समर्थ होकर और लोक कल्याण के लिए उस वाणी का द्वादशांग श्रुति के रूप में जगत को प़दान करते हैं,ऐसे महामुनीश्वर को कहते हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। आजकल भगवान् की वाणी को गुरु सभी जीव को प़दान करते हैं।
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गणधर का तात्पर्य जो तीर्थंकरों के पादमूल में समस्त रिद्धियां प्राप्त करके भगवान की दिव्यध्वनि को धारण करने में समर्थ होकर और लोक कल्याण के लिए उस वाणी का द्वादशांग श्रुति के रूप में जगत को प़दान करते हैं,ऐसे महामुनीश्वर को कहते हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। आजकल भगवान् की वाणी को गुरु सभी जीव को प़दान करते हैं।