ज़िद, गुस्सा, लालच और अपमानादि….
खर्राटों की तरह होते हैं,
जो….
दूसरा करे तो चुभते हैं,
पर ख़ुद करें तो एहसास तक नहीं होता ।
(सुरेश)
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उपरोक्त कथन सत्य है कि गलतियां हर मनुष्य में होती है। अतः ज़िद, गुस्सा, गलतियां,लालच और अपमान में विवेक नहीं रहता है,जो खर्राटों की तरह होते हैं,जो दूसरों को चुभते हैं, लेकिन खुद करें तो एहसास नहीं होता है। अतः जीवन में अपनी गल्तियों को दूर करने का प्रयास आवश्यक है ताकि जीवन में कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि गलतियां हर मनुष्य में होती है। अतः ज़िद, गुस्सा, गलतियां,लालच और अपमान में विवेक नहीं रहता है,जो खर्राटों की तरह होते हैं,जो दूसरों को चुभते हैं, लेकिन खुद करें तो एहसास नहीं होता है। अतः जीवन में अपनी गल्तियों को दूर करने का प्रयास आवश्यक है ताकि जीवन में कल्याण हो सकता है।