गुरु / शिक्षा
दक्षिण में शिक्षा को “दंड” देना कहते हैं यानि जो उदंड को डंडे से अनुशासित करे पर कुम्हार के घड़े बनाने जैसा अंदर हाथ रखकर।
शिष्य संयम रूपी आग से नहीं, राग से डरता है।
शिक्षक तो दर्पण है उसके प्रति अर्पण/समर्पण सब छोटे हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि दक्षिण में शिक्षा को दंड देना कहते हैं यानी उदंड को अनुशासित करनें के लिए डडे की आवश्यकता होती है, लेकिन कुम्हार सरीख हाथ जो मटके पर चलाता है। शिष्य संयम रुपी आग से नहीं बल्कि राग से डरता है ।शिक्षक जो दर्पण है, उसके प़ति अर्पण या समर्पण सब छोटे है। जीवन के कल्याण के लिए गुरु के जाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
‘शिष्य संयम रूपी आग से नहीं, राग से डरता है।’ Is statement ka meaning clarify karenge, please ?
सही तो कहा है आचार्य श्री ने….शिष्य संयम को बहुमान देते हैं इसलिये उसके ताप से भी नहीं डरते।
राग को अहितकारी मानते हैं इसीलिए उससे डरते हैं।
Okay.