1) चत्तारिदंडक में साधु को ही क्यों लिया, आचार्य/उपाध्याय को क्यों नहीं ?
चूँकि साधु ही दीक्षित होते हैं, आचार्य/उपाध्याय की दीक्षा नहीं, उनका तो पदारोहण होता है,
अंत में सब साधु बनकर ही मोक्ष जाते हैं।
2) “शरण” जहाँ पापों से बचें।
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4 Responses
सबसे पहिले साधुऔ की दीक्षा होती है और मोक्ष के लिए साधु ही जाते हैं लेकिन आचार्य और उपाध्याय, साधु बनने के बाद ही संलेखना/मोक्ष होता है।
अतः चत्तारिकदंड़क केवल साधुऔ के लिए ही होता है।साधुऔ की शरण में जाने से पापो से बचा जा सकता है।
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सबसे पहिले साधुऔ की दीक्षा होती है और मोक्ष के लिए साधु ही जाते हैं लेकिन आचार्य और उपाध्याय, साधु बनने के बाद ही संलेखना/मोक्ष होता है।
अतः चत्तारिकदंड़क केवल साधुऔ के लिए ही होता है।साधुऔ की शरण में जाने से पापो से बचा जा सकता है।
Can meaning of the title be explained please?
चत्तारिदंडक यानि चार दंडक …
4 ही मंगल,
4 ही लोक में उत्तम ,
4 की ही शरण जाने योग्य है ।
Okay.