सम्यग्दर्शन के लिये चार गुण (प्रशम, अनुकम्पा, संवेग, आस्तिक्य*)।
पहले तीन गुण तो मिथ्यादृष्टि के भी हो सकते पर आस्तिक्य का संबंध सम्यग्दर्शन से ही रहता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
* (सच्चे देव, गुरु, शास्त्र पर सच्ची श्रद्धा।)
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने चार गुण का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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