ये नवदेवता में तो हैं पर देव-दर्शन का विकल्प नहीं हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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जो सदा सुख में लीन रहते हैं, वे देव है या जन्म मरण रुप संसार से मुक्त हो गए हैं और धर्म के विधाता है।अतः पंचपरमेष्ठी, जिनधर्म, जिनवाणी, जिनबिम्ब और जिनमन्दिर, वे सब नव देवता माने गए हैं।जिन्होने काम, क़ोध और आदि विकारो को जीत लिया है वह जिन कहलाते हैं।
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जो सदा सुख में लीन रहते हैं, वे देव है या जन्म मरण रुप संसार से मुक्त हो गए हैं और धर्म के विधाता है।अतः पंचपरमेष्ठी, जिनधर्म, जिनवाणी, जिनबिम्ब और जिनमन्दिर, वे सब नव देवता माने गए हैं।जिन्होने काम, क़ोध और आदि विकारो को जीत लिया है वह जिन कहलाते हैं।
Can meaning of the post be explained please?
जिनमंदिर नवदेवता में होते हुए भी वह देवदर्शन का alternate नहीं है।
Okay.