जीवत्व पारिणामिक भाव है,
जो जीता था/है/रहेगा।
पर यह तो गति से गत्यंतर होने पर – कभी 4 प्राण कभी 10, बदलता रहता है ?
यह व्यवहार से हुआ।
निश्चय से – चैतन्य रूप , अनादिनिधन/ सब जीवों में/ उपयोग कम ज्यादा होता रहता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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जीव जो जानता है उसे कहते हैं,या जिसमें चेतना है।यह दो प्रकार के होते हैं, संसारी और मुक्ति जीव। संसारी जीव जो निरंतर जन्म मरण का दुःख भोगते रहते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवत्व परिणामिक भाव है,जो जीता था, है और रहेगा। निश्चय से चैतन्य रुप,अनाधि निधन,सब जीवों में उपयोग कम ज्यादा होता रहता है।
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जीव जो जानता है उसे कहते हैं,या जिसमें चेतना है।यह दो प्रकार के होते हैं, संसारी और मुक्ति जीव। संसारी जीव जो निरंतर जन्म मरण का दुःख भोगते रहते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवत्व परिणामिक भाव है,जो जीता था, है और रहेगा। निश्चय से चैतन्य रुप,अनाधि निधन,सब जीवों में उपयोग कम ज्यादा होता रहता है।