जीवों के प्रकार
जीव तीन प्रकार के:
1) धन है, इससे अनभिज्ञ: जैसे किसी ने मकान बेचा; उसके नीचे ख़ज़ाना था, किंतु उसे मालूम नहीं। ऐसे हीअभव्य मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं।
2) धन है; यह मालूम भी है कि तिजोरी में रखा है, पर चाबी का पता नहीं। माल चोरी हो गया। यह हुए अविरत सम्यग्दृष्टि।
3) धन है; उसका सदुपयोग करते हैं, उसका स्वरूप जानते हैं: जैसे महापुरुष/चक्रवर्ती आदि।
पहले दो प्रकार के जीव भटक रहे हैं।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (26 दिसम्बर ’24)
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने जीवों के प़कार को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।