जैन दर्शन
जैन दर्शन संसार मिटाने के लिये नहीं, चलाने के लिये है।
हर उस क्रिया करने को बोला – जो स्व-पर हितकारी हो, सिर्फ एक के हित की न हो।
वह न सत्यवादी है, न असत्यवादी, बल्कि आत्मवादी है;
न सिर्फ अहिंसक, न हिंसक तभी तो देश/ धर्म/ अपनी व अपनों की रक्षा के लिये हथियार के प्रयोग करने को सराहा है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि जैन दर्शन संसार मिटाने के लिए नहीं बल्कि चलाने के लिए होता है। जैन दर्शन अहिंसा का प्रतीक है , इसमें दया धर्म का मूल है। जैन दर्शन स्वयं के कल्याण के लिए बल्कि हर जीव के लिए कल्याणकारी होता है। यह न सत्यवादी न असत्य वादी है, बल्कि आत्मवादी है। अहिंसक ही देश एवं धर्म को बचाने वाला होता है। इसमें अपनी रक्षा एवं देश की रक्षा के लिए हथियार उठाने की सराहना भी की गई है।