हर वस्तु में मात्र ज्ञेयक शक्ति होती है पर ज्ञान और दर्शन में ज्ञायक तथा ज्ञेय दोनों शक्त्तियाँ होती हैं।
सब पुदगल पर-प्रकाशित, लेकिन दीपक स्व-पर प्रकाशित।
इन्द्रिय-ज्ञान तथा मिथ्यादृष्टि भी “पर-प्रकाशक” ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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9 Responses
दर्शन का मतलब मोक्ष मार्ग का रास्ता दिखाना है, सम्यग्दर्शन,संयम, उत्तमक्षमा धर्म रुप हैं।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। ज्ञान बिना दर्शन का महत्व नहीं है। अतः जीवन में सम्यगद्वष्टि होना परमावश्यक है, ताकि जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकते हैं।
1) ज्ञेय = जानने योग्य।
2) दीपक दूसरों को तो प्रकाशित करता ही है पर स्वयं भी प्रकाशित हो जाता है।
3) मिथ्यादृष्टी स्वयं की ओर न देख, पर की ओर ही देखता है।
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दर्शन का मतलब मोक्ष मार्ग का रास्ता दिखाना है, सम्यग्दर्शन,संयम, उत्तमक्षमा धर्म रुप हैं।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। ज्ञान बिना दर्शन का महत्व नहीं है। अतः जीवन में सम्यगद्वष्टि होना परमावश्यक है, ताकि जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकते हैं।
1) “ज्ञेयक” ka kya meaning hai, please?
2) “दीपक स्व-पर प्रकाशित” kaise hai, please?
3) “मिथ्यादृष्टि भी “पर-प्रकाशक” kaise hai, please?
1) ज्ञेय = जानने योग्य।
2) दीपक दूसरों को तो प्रकाशित करता ही है पर स्वयं भी प्रकाशित हो जाता है।
3) मिथ्यादृष्टी स्वयं की ओर न देख, पर की ओर ही देखता है।
Okay.
“ज्ञेयक” aur “ज्ञेय” kya ek hi hai ?
हाँ, एक ही हैं।
OK.
Ok
Ok.