तीर्थंकर प्रकृति बंध
तीर्थंकर प्रकृति बंध का प्रारम्भ – 4-7 गुणस्थानों में, बाद में 8वें गुणस्थान की प्रारम्भ अवस्था तक होता रहता है।
यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या क्षायिक सम्यग्दर्शन में हो/रह सकता है।
इसके सत्ता में रहने के प्रभाव –
1. जीव अगर नरक में है तो 6 माह पहले वज्रकपाट लग जाता है (आयु पूर्ण होने से पहले) ।
2. गर्भ में आने के 6 माह पहले से 15 माह तक रत्नवर्षा।
3. गर्भ, जन्म, तप कल्याणक।
उदय 13,14 गुणस्थानों में ही।
भरत/ऐरावत क्षेत्रों में 5 कल्याणक वाले ही, विदेह क्षेत्रों में 3/2 कल्याणक वाले भी।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
4 Responses
प्रकृति बंध का तात्पर्य यानी प्रकृति का अर्थ स्वभाव है, आत्मा के द्वारा ग़हण किये गये नये पुदगल स्कंध में ज्ञान आदि आधारित करने रुप कर्म प्रकृति होता है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) ‘वज्रकपाट’ ka kya meaning hai, please ?
2) ‘Gyaan’ aur ‘Moksh’ kalyanak ka mention kyun nahi kiya ?
1) चारों ओर Shield लग जाना ताकि दूसरे नारकी मार न सकें।
2) केवलज्ञान तथा मोक्ष कल्याण तो तीर्थंकर प्रकृति के उदय होने पर ही होते हैं।
Okay.