तीर्थ-यात्रा
जब जीवन निर्वाह/व्यापार में सफलता नहीं मिलती तब हम गाँव-गाँव जाकर नये-नये काम खोजते हैं ।
ऐसे ही जब अपने मंदिर के जिनबिंब से प्रगति/सम्यग्दर्शन / जीवन का निर्माण नहीं हो रहा हो तब तीर्थों में जाकर अलग-अलग बिंबों के दर्शन करें ।
मुनि श्री पवित्रसागर जी महाराज
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तीर्थ- -जिसके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं वह तीर्थ कहलाते हैं, तीर्थ का मतलब धर्म भी है। धर्म की प्राप्ति में सहायक श्री महावीर जी,श्री गोमटेश बाहुबली आदि अतिशय क्षेत्र और सम्मदेशिखर जी, पावापुरी, गिरनार आदि निवार्ण क्षेत्र भी तीर्थ कहलाते हैं। तीर्थ यात्रा का मतलब अकार्य से निवृत्त होना है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि जब जीवन निर्वाह और व्यापार में सफलता नहीं मिलती तब गांव-गांव जाकर नये कार्य ढूंढते हैं, इसी प्रकार अपने मन्दिर के जिनबिंब से प्रगति, सम्यग्दर्शन और जीवन का निर्माण नहीं होता रहा हो तब अलग अलग जगह जाकर जिन बिंबों के दर्शन करने जाते हैं। जिसके कारण जीवन में धर्म के प्रति श्रद्वान बढ़ता है एवं ऊर्जा बढ़ती है।