त्याग-समस्त परिग़ह की निवृति को कहते हैं। परस्पर प़ीति के लिए अपनी वस्तु देना त्याग की श्रेणी में आता है, इसी तरह संयमी जनों को योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी श्रेष्ठ दान कहलाता है। परोपकार की भावना से वस्तु देना दान कहलाता है। इससे स्पष्ट है कि दान ब्याज का रुप है जबकि त्याग मूल रुप का होना है।
4 Responses
त्याग-समस्त परिग़ह की निवृति को कहते हैं। परस्पर प़ीति के लिए अपनी वस्तु देना त्याग की श्रेणी में आता है, इसी तरह संयमी जनों को योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी श्रेष्ठ दान कहलाता है। परोपकार की भावना से वस्तु देना दान कहलाता है। इससे स्पष्ट है कि दान ब्याज का रुप है जबकि त्याग मूल रुप का होना है।
Can its meaning be explained please?
दान = ब्याज = partial, capital को अपने लिए बचाकर
त्याग = मूल = पूरा का पूरा छोड़ देना
Okay.