त्याग में दान भी आता है (त्याग का ही भेद है) ।
दान पर-निमित्तिक है।
त्याग स्व-निमित्तिक।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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त्याग का तात्पर्य सचेतन और अचेतन समस्त परिग्रह की निवृत्ति को कहते हैं, परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु देना भी होता है, संयमी जनों के योग्य ज्ञान आदि दान करना भी त्याग है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि त्याग में दान भी आता है, त्याग के दो भेद हैं,दान पर निमित्तिक है एवं त्याग स्व निमित्तक है। अतः जीवन के कल्याण के लिए आवश्यकता अनुसार दान करना परम आवश्यक है।
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त्याग का तात्पर्य सचेतन और अचेतन समस्त परिग्रह की निवृत्ति को कहते हैं, परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु देना भी होता है, संयमी जनों के योग्य ज्ञान आदि दान करना भी त्याग है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि त्याग में दान भी आता है, त्याग के दो भेद हैं,दान पर निमित्तिक है एवं त्याग स्व निमित्तक है। अतः जीवन के कल्याण के लिए आवश्यकता अनुसार दान करना परम आवश्यक है।