सबसे पहले दर्शन, फिर ज्ञान (मिथ्या);
जो बताएगा – सच्चे देव, गुरु, शास्त्र तथा सच्ची श्रद्धा क्या होती है और इसके जानने/मानने से ही सम्यग्दर्शन होगा, इसके साथ साथ हमारा मिथ्या-ज्ञान, सम्यग्ज्ञान में परिवर्तित हो जाएगा।
चिंतन
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आत्मा में दर्शन,ज्ञान होता है। यदि शुभ योग एवं शुभ उपयोग होगा तभी पुण्य की प्राप्ति होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सबसे पहले दर्शन और फिर ज्ञान,जो बतायेगा कि सच्चे देव, गुरु और शास्त्र पर सच्ची श्रद्धा होना चाहिए, इसके जानने, मानने से सम्यग्दर्शन होगा, इसके साथ यदि मिथ्था ज्ञान सम्यग्ज्ञान में परिवर्तित हो सकता है।
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आत्मा में दर्शन,ज्ञान होता है। यदि शुभ योग एवं शुभ उपयोग होगा तभी पुण्य की प्राप्ति होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सबसे पहले दर्शन और फिर ज्ञान,जो बतायेगा कि सच्चे देव, गुरु और शास्त्र पर सच्ची श्रद्धा होना चाहिए, इसके जानने, मानने से सम्यग्दर्शन होगा, इसके साथ यदि मिथ्था ज्ञान सम्यग्ज्ञान में परिवर्तित हो सकता है।