दर्शन मोहनीय के 3 भेदों में सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्-प्रकृति में परिषह/दोष भी।
(क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि के चल, मल, अगाढ़ दोष होते हैं।
चारित्रवान को भी भाव आ जाते हैं…ऋद्धियाँ क्यों प्राप्त नहीं हो रहीं जबकि मिथ्यादृष्टियों तक को सिद्धियां हो रही हैं !
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मोहनीय दर्शन का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से सच्चे देवशास्त्र, गुरु के प़ति अश्रान होता है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि दर्शन मोहनीय से अदर्शन होता है। सम्यगद्वष्टि को ही दर्शन हो सकते हैं, जबकि मिथ्थाद्वष्टि को कभी दर्शन सम्भव नहीं हो सकते हैं। अतः देव शास्त्र एवं गुरुओं पर श्रद्वान होना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मोहनीय दर्शन का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से सच्चे देवशास्त्र, गुरु के प़ति अश्रान होता है।
अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि दर्शन मोहनीय से अदर्शन होता है। सम्यगद्वष्टि को ही दर्शन हो सकते हैं, जबकि मिथ्थाद्वष्टि को कभी दर्शन सम्भव नहीं हो सकते हैं। अतः देव शास्त्र एवं गुरुओं पर श्रद्वान होना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।