दान / हान / पान
लघु बनकर नहीं, गुरु बनकर ही धर्म का दान दिया जाता है।
गुरु बनकर नहीं, लघु बनकर ही कर्म का हान किया जाता है।
न गुरु बनकर न लघु बनकर बल्कि अगुरुलघु बनकर ही धर्म का पान किया जा सकता है, यह हुई अंतरंग बात।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
लघु बनकर नहीं, गुरु बनकर ही धर्म का दान दिया जाता है।
गुरु बनकर नहीं, लघु बनकर ही कर्म का हान किया जाता है।
न गुरु बनकर न लघु बनकर बल्कि अगुरुलघु बनकर ही धर्म का पान किया जा सकता है, यह हुई अंतरंग बात।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
4 Responses
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि लघु बनकर नहीं, गुरु बनकर ही धर्म का दान दिया जाता है। गुरु बनकर नहीं बल्कि लघु बनकर कर्मों को काटा जाता है, न गुरु बनकर न लघु बनकर बल्कि अगुरुलघु ही धर्म का पान किया जा सकता है,यही अंतरंग बात है। अतः जीवन में धर्म का पान करने पर ही दान दिया जावे,तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।
‘लघु बनकर ही कर्म का हान दिया जाता है।’ Is statement ko clarify karenge, please ?
1) “दिया” जगह “किया”
2) जब तक लघु/ छोटे नहीं बनोगे, विनम्रता कैसे आयेगी ?, कर्म कैसे कटेंगे ?
Okay.