पहले प्रचलन में था कि अर्थी उठाने से पहले दान की घोषणा करते थे ।
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दान- -परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अपर्ण करना होता है,यह भी चार प्रकार के होते हैं। जैन धर्म में दान देना का बहुत महत्व है, इससे कर्मों की निर्जरा होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि मनुष्य को मृत्यु के पूर्व दान करना आवश्यक रहता है, इसमें कई प्रकार के दान देने का प़चलन रहा है, इसलिए अर्थी उधाने के पूर्व भी दान देने का का प़चलन रहा है,आज भी चल रहा है क्योंकि इससे कर्मों की बजह से अगली गति का भी निर्धारित होता है।
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दान- -परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अपर्ण करना होता है,यह भी चार प्रकार के होते हैं। जैन धर्म में दान देना का बहुत महत्व है, इससे कर्मों की निर्जरा होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि मनुष्य को मृत्यु के पूर्व दान करना आवश्यक रहता है, इसमें कई प्रकार के दान देने का प़चलन रहा है, इसलिए अर्थी उधाने के पूर्व भी दान देने का का प़चलन रहा है,आज भी चल रहा है क्योंकि इससे कर्मों की बजह से अगली गति का भी निर्धारित होता है।