यह कथन सत्य है कि जीवन में जो दायित्व मिलता है, चाहे वह लौकिक या परमार्थ का हो उसको अपना कर्तव्य समझ कर निभाना आवश्यक है लेकिन उसको ओढ़ना यानी भार मत समझना चाहिए तभी जीवन का कल्याण होगा। “(दायित्व को भी ज़रूरत से ज़्यादा seriously नहीं लेना चाहिए)“ Reply
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यह कथन सत्य है कि जीवन में जो दायित्व मिलता है, चाहे वह लौकिक या परमार्थ का हो उसको अपना कर्तव्य समझ कर निभाना आवश्यक है लेकिन उसको ओढ़ना यानी भार मत समझना चाहिए तभी जीवन का कल्याण होगा।
“(दायित्व को भी ज़रूरत से ज़्यादा seriously नहीं लेना चाहिए)“