दिव्यध्वनि
दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ?
क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारू रूप से सुनाने में सहायक होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ?
क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारू रूप से सुनाने में सहायक होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
M | T | W | T | F | S | S |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 |
22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
29 | 30 | 31 |
One Response
दिव्यध्वनि का तात्पर्य केवल ज्ञान होते ही अरिहंत भगवान् के मुख से जो सब जीवों का कल्याण करने वाले ओंकार रुप वाणी खिरती है। यह सर्व भाषा से युक्त होती है,जो मनुष्य,तिर्यंच आदि सभी को अपनी भाषा में सुनाई देती है, इसमें छह छह घड़ी दिव्यध्वनि खिरती है, इसमें गणधर,इन्द़ या चक्रवर्ती आदि के द्वारा प़श्न पूछें जाने पर,शेष समय में दिव्यध्वनी खिरती है। अतः मुनि श्री का कथन पूर्ण सत्य है।