1) Minimum को Maximum मानकर Maximum आनंद लेना।
2) Maximum को भी Minimum मानकर Minimum आनंद लेना।
चिंतन
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7 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि दृष्टि दो प़कार की होती है कि कम से कम को अधिक से अधिक आनन्द लेना होता है! इसी प्रकार दुसरी अधिक से अधिक को कम से कम मानकर अधिक से आनन्द लेना होता है! इसमें दूसरी प़कार का चितन करना जीवन का कल्याण अवश्य होगा!
जीवन में कम ज्यादा तो होता रहता है।
कम में भी यदि पूरे खुश/ संतुष्ट रह सकें तो maximum आनंद ले सकते हैं न !
भरपूर होने पर भी यदि संतुष्ट नहीं रह सके तो जीवन का आनंद कम/ minimum रह जायेगा न !
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उपरोक्त कथन सत्य है कि दृष्टि दो प़कार की होती है कि कम से कम को अधिक से अधिक आनन्द लेना होता है! इसी प्रकार दुसरी अधिक से अधिक को कम से कम मानकर अधिक से आनन्द लेना होता है! इसमें दूसरी प़कार का चितन करना जीवन का कल्याण अवश्य होगा!
Beautiful post . Yeh sakaratmakta sadaaiv banaaye rakhne ke liye prerit karta hai !
2nd line ko thoda aur clarify karenge, please ?
जो Maximum को भी Minimum मानेगा, उसका आनंद तो Minimum रह ही जायेगा न !
Yeh kis apeksha se keh rahe hain ?
जीवन में कम ज्यादा तो होता रहता है।
कम में भी यदि पूरे खुश/ संतुष्ट रह सकें तो maximum आनंद ले सकते हैं न !
भरपूर होने पर भी यदि संतुष्ट नहीं रह सके तो जीवन का आनंद कम/ minimum रह जायेगा न !
Okay.