द्रव्यों का चिंतन
द्रव्यों का उपादेय – जीवास्तिकाय, बाकी सब ज्ञेय ।
अज्ञानी की दृष्टि पुद्गल पर, थोड़ा ज्ञान होने पर जीवद्रव्य पर, ज्ञानी होने पर जीवास्तिकाय का चिंतन ।
जीवद्रव्य पर्यायों के साथ परिणमन करने वाला,
जीवास्तिकाय – मैं जीव हूँ, असंख्यात प्रदेशी हूँ, तब अपना स्वरूप समझ आयेगा ।
तब पंचपरमेष्ठी में शुद्ध स्वरूप दिखेगा ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
किसी कार्य के होने में स्वयं कार्य रुप परिणमन को उपादान कहते हैं, जबकि पुद्वगल का मतलब पूरण और गलन स्वभाव वाला होता है। इसके अलावा आस्तिक्य का मतलब सच्चे देव शास्त्र गुरु और तत्व के विषय के जानने वाले हैं। अतः मुनि श्री प़णम्य सागर महाराज का कथन पूर्ण सत्य है.. जो उदाहरण दिया गया है।