धर्मध्यान है ….
. अधर्म छोड़ना,
. अनिष्ट से दूर रहना,
. अनावश्यक का त्याग,
. सीधा चलना।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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One Response
धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है अथवा जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुंचाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अधर्म को छोड़ना धर्म ध्यान है, अनिष्ट से दूर रहना, अनावश्यक का त्याग एवं सीधा चलना धर्म ध्यान है। अतः अधर्म को छोड़कर धर्म ध्यान में लगे रहने से ही कल्याण हो सकता है।
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है अथवा जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुंचाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अधर्म को छोड़ना धर्म ध्यान है, अनिष्ट से दूर रहना, अनावश्यक का त्याग एवं सीधा चलना धर्म ध्यान है। अतः अधर्म को छोड़कर धर्म ध्यान में लगे रहने से ही कल्याण हो सकता है।