धर्मात्मा

जो पुण्य-कर्मों में आगे,
और
पाप-कर्मों में (सबसे) पीछे रहे ।
जो बिना बोली (लगाये) खूब बोल दे, वह धर्मात्मा ।

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. धर्मात्मा का मतलब धर्म को आत्मसात् करना यानी सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होना है। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने सत्य कहा है कि पुण्य कर्मों को आगे रखना चाहिए जबकि पाप कर्मों को पीछे यानी कम करते जाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जो बिना बोली के ज्यादा बोलने का भाव रखता है वह धर्मात्मा होता है।

  2. “जो बिना बोली (लगाये) खूब बोल दे, वह धर्मात्मा” ka kya meaning hai, please?

    1. बोली लगा कर दान में पुण्य तो है पर प्रायः नाम का भाव भी आ जाता है,
      बिना बोली लगाये, यथाशक्ति दान में पुण्य के साथ शुभ-भाव की बहुलता होती है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

December 23, 2020

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728