धर्म / पुण्य
भगवान महावीर के समय एक कसाई रोज़ भैंसे मारता था । श्रेणिक राजा ने उसे जेल में डाल दिया । पर जेल में भी वह अपने शरीर से मैल की बत्ती बना-बना कर उन्हें नाख़ून से काटता था, क्या उसे भाव हिंसा का दोष नहीं लगेगा ?
श्री राम वनवास में 14 वर्ष तक धर्म कैसे करते थे, जंगल में मंदिर/ पूजा की सामिग्री तो थी नहीं !
जब कसाई को भावों से पाप लगा तो श्री राम को/ आज की परिस्थिति में हमको भावों से पुण्य नहीं मिलेगा !!
मुनि श्री सुधासागर जी
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धर्म –सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ही धर्म है या जो जीवों को संसार के दुखों से बचाना मोक्ष सुख में पहुचावे वहीं धर्म है। धर्म भी दो प्रकार के हैं, व्यवहार और निश्चय धर्म। दान पूजा शील,जप,तप,त्याग आदि व्यवहार धर्म है तथा परिणामों की निर्मलता, समता व वीतरागता निश्चय धर्म है।
पुण्य का मतलब जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे कहते हैं अथवा जीव दया दान पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं।
भाव का मतलब जीव के परिणाम को कहते हैं,यह भी पांच प्रकार के होते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि कि भगवान् महावीर के समय में क़साई को भाव हिंसा का दोष तो अवश्य लगा क्योंकि क़साई का भाव हिंसा का था। लेकिन श्री राम को बनवास मिला और उनके पास पूजा आदि की सामग्री नहीं थीं लेकिन उनकेे पास धर्म करने के व पुण्य के भाव थे इसलिए उनको पुण्य का फल मिलना निश्चित था।