भोजन दो तरह से –
पथ्य रूप = ये खाना/ये नहीं खाना,
स्वभाव रूप = स्वस्थ अवस्था में, आनंद आता है ।
इसी तरह –
धर्म औषधी रूप = दु:ख में किया गया,
आनंद रूप = सुख में किया गया, यदि आनंद-रूप करोगे तो औषधि नहीं लेना पड़ेगी ।
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4 Responses
धर्म को पालने वाले को अधर्म नहीं करना चाहिए। भोजन भी दो तरह से करने वाले होते हैं पथ्य रुप होता है,उसको खाना और यह नहीं खाना होता है। अतः इसी तरह धर्म औषधि रुप जो दुःख में किया जाता है यदि धर्म जो सुख में किया हो और आनन्द रुप होगा तो उसको औषधि आवश्यकता नहीं होती है। ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
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धर्म को पालने वाले को अधर्म नहीं करना चाहिए। भोजन भी दो तरह से करने वाले होते हैं पथ्य रुप होता है,उसको खाना और यह नहीं खाना होता है। अतः इसी तरह धर्म औषधि रुप जो दुःख में किया जाता है यदि धर्म जो सुख में किया हो और आनन्द रुप होगा तो उसको औषधि आवश्यकता नहीं होती है। ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
“पथ्य रूप” ka kya meaning hai, please?
पथ्य = वैद्य की सलाह मुताबिक/ restrictions सहित ।
Okay.