क्रियात्मक प्रवृत्ति तथा भावात्मक निवृत्ति को छोड़कर जो बचा, वह ध्यान कहलाता है ।
चिंतन
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता का नाम है।यह चार प्रकार के होते हैं, धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होने से शुभ ध्यान होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि क़ियात्मक प़वृति तथा भावात्मक निवृत्ति को छोड़कर जो बचा वही ध्यान कहलाता है।
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता का नाम है।यह चार प्रकार के होते हैं, धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होने से शुभ ध्यान होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि क़ियात्मक प़वृति तथा भावात्मक निवृत्ति को छोड़कर जो बचा वही ध्यान कहलाता है।
Can meaning of the post be explained, please?
ध्यान वह अवस्था है जिसमें क्रिया ही नहीं क्रिया करने की प्रवृत्ति तथा निवृत्ति के भाव भी न रह जाएँ ।
Okay.