अभ्यंतर और बाह्य परिग्रह के प्रति लगाव न होना ध्याता का स्वरूप है ।
ऐसा ध्याता ध्येय की चिंता किये बिना ध्यान लगा सकता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी (द्रव्य संग्रह गाथा – 55)
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता है।यह चार प्रकार के होते हैं आर्तध्यान,रौद़ध्यान, धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान। धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अभ्यांतर और ब़ाम्ह परिग़ह के प़ति लगाव न होना ध्यान का स्वरुप है। ऐसा ध्येय की चिंता किए बिना ध्यान लगा सकता है। अतः जीवन में ध्यान लगाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता है।यह चार प्रकार के होते हैं आर्तध्यान,रौद़ध्यान, धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान। धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सहायक होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अभ्यांतर और ब़ाम्ह परिग़ह के प़ति लगाव न होना ध्यान का स्वरुप है। ऐसा ध्येय की चिंता किए बिना ध्यान लगा सकता है। अतः जीवन में ध्यान लगाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है