“पर” को अपना कहना – लोक व्यवहार की भाषा है ।
Local Language में ही तो दूसरों को समझ आयेगा/दूसरे आपको समझ पायेंगे ।
पर मानना आगम की भाषा में, तभी आत्मा समझेगी/समझदार बनेगी ।
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2 Responses
वस्तु के अनेक धर्मों में से किसी एक धर्म को साक्षेप रुप से कथन करने की पद्धति को नय कहते हैं, अथवा ज्ञाता और वक्ता के अभिप्राय को नय कहते हैं।
अतः पर को अपना कहना यह लोक व्यवहार की भाषा है। Local language में ही तो दूसरों को समझ आयेगा और दूसरे आपको समझ पायेंगे। लेकिन मानना आगम की भाषा में,आत्मा समझेंगी और समझदार बनेंगी।
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वस्तु के अनेक धर्मों में से किसी एक धर्म को साक्षेप रुप से कथन करने की पद्धति को नय कहते हैं, अथवा ज्ञाता और वक्ता के अभिप्राय को नय कहते हैं।
अतः पर को अपना कहना यह लोक व्यवहार की भाषा है। Local language में ही तो दूसरों को समझ आयेगा और दूसरे आपको समझ पायेंगे। लेकिन मानना आगम की भाषा में,आत्मा समझेंगी और समझदार बनेंगी।
Beautiful explanation to understand the meaning of “नय” !