व्यवहार नय – पिता/पुत्र की अपेक्षा, “पर” सापेक्ष, भेद रूप, दर्जी द्वारा कपड़े के टुकड़े करना, निश्चय तक पहुँचाता है ।
निश्चय नय – पिता/पुत्र को हटाकर जो शेष (मैं) बचा,”स्व”सापेक्ष, अभेद रूप, कटे टुकड़ों को सीकर पूर्ण कपड़ा बनाना ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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नय का मतलब वस्तु के अनेक धर्मों में किसी एक धर्म को साक्षेप रुप से कथन करने की पद्धति, अथवा ज्ञाता और वक्ता के अभिप्राय को भी कहते हैं। किसी एक धर्म को मुख्य करने और शेष धर्मों को गौण करके साक्षेप रुप से कथन करता है और इस तरह वस्तु का पूर्णतया जानना आसान हो जाता है यह नय का कार्य होता है, इसके दो भेद हैं, निश्चय नय और व्यवहार नय। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। निश्चय अटल होता है जबकि व्यवहार के बिना कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है।
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नय का मतलब वस्तु के अनेक धर्मों में किसी एक धर्म को साक्षेप रुप से कथन करने की पद्धति, अथवा ज्ञाता और वक्ता के अभिप्राय को भी कहते हैं। किसी एक धर्म को मुख्य करने और शेष धर्मों को गौण करके साक्षेप रुप से कथन करता है और इस तरह वस्तु का पूर्णतया जानना आसान हो जाता है यह नय का कार्य होता है, इसके दो भेद हैं, निश्चय नय और व्यवहार नय। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। निश्चय अटल होता है जबकि व्यवहार के बिना कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है।