श्रमण श्रावक को देखेगा तो वीतरागता कम होगी; श्रावक श्रमण को देखेगा तो वीतरागता बढ़ेगी।
सम्यग्दृष्टि को झुकी आँखें देखने (नासा दृष्टि) में आनंद आता है।
इसीलिये भगवान की मूर्ति नासा दृष्टि वाली होती है, वीतरागता का प्रतीक।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रमण, श्रावक को देखेगा तो वीतरागता कम होगी, जब श्रावक श्रमण को देखता है तो वीतरागता बढ़ेगी। सम्यग्द्वष्टि की झुकी आंखें देखने यानी नासा द्वष्टि में ही आनंद आता है। इसलिए भगवान् की मूर्ति नासा द्वष्टि वाली होती है यह वीतरागता का प्रतीक होता है। अतः भगवान् की नासा द्वष्टि को देखने पर वीतरागता बढ़ेगी तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रमण, श्रावक को देखेगा तो वीतरागता कम होगी, जब श्रावक श्रमण को देखता है तो वीतरागता बढ़ेगी। सम्यग्द्वष्टि की झुकी आंखें देखने यानी नासा द्वष्टि में ही आनंद आता है। इसलिए भगवान् की मूर्ति नासा द्वष्टि वाली होती है यह वीतरागता का प्रतीक होता है। अतः भगवान् की नासा द्वष्टि को देखने पर वीतरागता बढ़ेगी तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।