निंदा
जब निंदा करना ग़लत है, तो स्वयं की निंदा करने को क्यों कहा ?
ताकि मद न आये,
साथ-साथ अपनी प्रशंसा पर भी रोक ज़रूरी;
अपनी प्रशंसा से दूसरों की निंदा हो ही जाती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
जब निंदा करना ग़लत है, तो स्वयं की निंदा करने को क्यों कहा ?
ताकि मद न आये,
साथ-साथ अपनी प्रशंसा पर भी रोक ज़रूरी;
अपनी प्रशंसा से दूसरों की निंदा हो ही जाती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
निंदा का तात्पर्य बुराई करना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जब निंदा करना ग़लत है,तो स्वयं की निंदा करने को कहा गया है, क्योंकि जीवन में मद नही आयेगा, इसके साथ अपनी प़शंशा पर रोक करना जरूरी है, क्योंकि अपनी प़शंशा से दुसरों की निंदा हो जाती है। अतः कभी किसी की निंदा नहीं करना चाहिए, यदि आपकी कोई करता है तो अपने भीतर स्वीकार करके उससे अनुभव लेकर सुधार करने की आवश्यकता है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।