पर्याप्तकों तथा अपर्याप्तकों की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।
काय-स्थिति → निगोद में ही लगातार जन्म मरण…
उत्कृष्ट → असंख्यात सागरोपम कोड़ा-कोड़ी सागर जैसे जलेबी का मटका दिवाली पर धुलता है सो काय-स्थिति 1 वर्ष है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड – गाथा-193)
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7 Responses
मुनि महाराज जी ने निगोदिया का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है ! अतः जीवन में अच्छे कर्मचारी करना चाहिए ताकि पंच इन्दियो में जन्म लेना चाहिए ताकि जीवन सार्थक बन सकता है!
1) ‘निगोद में ही लगातार जन्म मरण’; yeh kya ‘jaghanya kaya-sthithi ‘ hai ?
2) ‘Utkrasht’ me ek taraf to ‘असंख्यात सागरोपम कोड़ा-कोड़ी सागर’ kaha aur ek taraf ‘1 वर्ष’ kaha. Can this be explained,
please ?
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मुनि महाराज जी ने निगोदिया का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है ! अतः जीवन में अच्छे कर्मचारी करना चाहिए ताकि पंच इन्दियो में जन्म लेना चाहिए ताकि जीवन सार्थक बन सकता है!
1) ‘निगोद में ही लगातार जन्म मरण’; yeh kya ‘jaghanya kaya-sthithi ‘ hai ?
2) ‘Utkrasht’ me ek taraf to ‘असंख्यात सागरोपम कोड़ा-कोड़ी सागर’ kaha aur ek taraf ‘1 वर्ष’ kaha. Can this be explained,
please ?
1) असंख्यात कोडा कोडी सागर उत्कृष्ट स्थिति बतायी गयी है।
2) उदाहरण है कि जलेबी का मटका एक साल तक धुलता सो उसके जीवों की काय स्थिति एक वर्ष हुई।
‘Jaghanya kaya-sthithi’ kitni hai ?
एक सांस में आठ-दस बार।
Okay.
Okay.