निदान भोगाकांक्षा के भाव से होता है।
मुनि बनने की भावना, प्रशस्त निदान है(भगवती आराधना),
पर है तो यह भी कांक्षा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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निदान का तात्पर्य आपके उस समय क्या भाव हैं, जिससे कल्याण हो सकता है। निदान भोगोकांक्षा की होती है एवं प़शस्त राग भी होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मुनि बनने के लिए प़शस्त राग अरिहंत अथवा साधुओं के प़ति होना चाहिए, इसमें भक्ति,दान,पूजा कार्यों में उत्साह और प़सन्नता आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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निदान का तात्पर्य आपके उस समय क्या भाव हैं, जिससे कल्याण हो सकता है। निदान भोगोकांक्षा की होती है एवं प़शस्त राग भी होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मुनि बनने के लिए प़शस्त राग अरिहंत अथवा साधुओं के प़ति होना चाहिए, इसमें भक्ति,दान,पूजा कार्यों में उत्साह और प़सन्नता आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।