पूजा से भी निर्जरा होती है,
पर उससे ज्यादा स्तुति, और-ज्यादा जप, सबसे ज्यादा ध्यान से ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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निर्जरा का मतलब आत्मा को भला बुरा फल देकर कर्मों का झड़ जाना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजा से भी निर्जरा होती है,पर उससे ज्यादा स्तुति, सबसे ज्यादा ध्यान से होती है। अतः जीवन में कर्मों को समाप्त करने के लिए इन विधियों पर ध्यान रखना आवश्यक है।
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निर्जरा का मतलब आत्मा को भला बुरा फल देकर कर्मों का झड़ जाना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजा से भी निर्जरा होती है,पर उससे ज्यादा स्तुति, सबसे ज्यादा ध्यान से होती है। अतः जीवन में कर्मों को समाप्त करने के लिए इन विधियों पर ध्यान रखना आवश्यक है।