निर्वाण/निर्माण
निर्वाण और निर्माण दौनों में ही ईंट पत्थर जमा किये जाते हैं ।
निर्माण में अधिक से अधिक जगह को चारों ओर से घेरा जाता है, खुले आकाश को चुराया जाता है ।
निर्वाण में भी गुणों के ईंट पत्थर जमा करके वेदी बनती है, ऊंचाईयां पाई जाती हैं, पर कम से कम जगह पर बैठा जाता है, अपना भी दूसरों को दे दिया जाता है ।
निर्माण में दोष है, तभी तो वास्तु की पूजा करके उसकी शुद्धि की जाती है,
निर्वाण में दोष दूर किये जाते हैं, तभी तो सब उनकी पूजा करते हैं ।
वेदी पर भी भगवान बिना Touch किये ऊंचाई पर बैठते हैं और अंत में सबसे ऊंची जगह सिद्धालय/मोक्ष पहुंच जाते हैं ।
वहाँ पहुंच कर तो शरीर के बराबर जगह भी उनकी अपनी नहीं होती है, सारा आकाश सबका होता है, सबको अपने में समाहित करने की भावना होती है, किसी को अपने आश्रित करने का भाव नहीं होता है ।
जो इस भावना वाले हैं वो निर्वाण की ओर बढ़ रहे हैं ।
जो इस भावना के नहीं हैं वे निर्माण की ओर, अपने चारों ओर कर्मों की घेराबंदी कर रहे हैं ।
ऐसी ही निर्वाण की प्रक्रिया करके महावीर भगवान आज अमावस्या के दिन मोक्ष पधारे थे ।
चिंतन