कृष्ण जी व्रत नहीं ले सकते थे पर निशंकित अंग पक्का था – जिनवाणी पर शंका नहीं थी, सो सबको व्रत लेने के लिये प्रेरित करते थे ।
नतीजा – तीर्थंकर प्रकृति बांध ली ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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निशंकित का मतलब अर्हन्त भगवान्,सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते हैं।
व़त का तात्पर्य हिंसा झूठ चोरी आदि पापों से निवृत्त होना है, लेकिन प़तिज्ञा पूर्वक होना है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कृष्ण जी व़त नहीं ले सकते थे लेकिन निशंकित अंग पक्का था उनको जिनवाणी पर शंका नहीं थी लेकिन सबको व़त लेने का को प्रेरित करते थे, इसका नतीजा तीर्थंकर प़कृति बांध लिया गया था।
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निशंकित का मतलब अर्हन्त भगवान्,सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते हैं।
व़त का तात्पर्य हिंसा झूठ चोरी आदि पापों से निवृत्त होना है, लेकिन प़तिज्ञा पूर्वक होना है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कृष्ण जी व़त नहीं ले सकते थे लेकिन निशंकित अंग पक्का था उनको जिनवाणी पर शंका नहीं थी लेकिन सबको व़त लेने का को प्रेरित करते थे, इसका नतीजा तीर्थंकर प़कृति बांध लिया गया था।